महात्मा गांधी ने केवल धोती क्यों पहनी? महात्मा गांधी और धोती

Share this Article

महात्मा गांधी और धोती – महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता थे। गांधी जयंती के अवसर पर, हम उनके विशेष परिधान की भूमिका पर प्रकाश डालेंगे। महात्मा गांधी जी ने केवल धोती पहनकर ही अपने आप को पहचान दिलाई। बाद में यह उनके विचारों और व्यक्तिगत जीवन के एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गयी।

महात्मा गांधी ने केवल धोती क्यों पहनी? महात्मा गांधी और धोती Why did Mahatma Gandhi wear only dhoti? Mahatma Gandhi and dhoti

Table of Contents

महात्मा गांधी और धोती

महात्मा गांधी के धोती पहनने का कारण उनकी सादगी और स्वावलंबन था। धोती एक पारंपरिक भारतीय परिधान है जिसमें केवल एक पट्टा होता है जो शरीर को ढकता है। गांधीजी ने इसे चुनकर दिखाया कि एक व्यक्ति अपने आत्मविश्वास और आत्मसमर्पण के साथ भी सादगी में बड़ी उच्चता प्राप्त कर सकता है।

महात्मा गांधी ने धोती को अपने समर्पण और आदर्शों का प्रतीक बनाया। वे इसे उनके जीवन में सदैव पहनते थे और इसे अपने संघ के सदस्यों के बीच भी प्रसारित करते थे। धोती को धारण करना उनके संघ के सदस्यों को उनके मूल आदर्शों की ओर प्रेरित करता था।

महात्मा गांधी ने केवल धोती क्यों पहनी?

गांधी जी ने आज से 95 वर्ष पहले 22 सितंबर 1921 को एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया था। उन्होंने धोती और शॉल के पक्ष में अपनी गुजराती पोशाक को त्याग दिया, जिसे अधिक महत्व दिया गया था। यह महत्वपूर्ण फैसला मदुरै में लिया गया, जहां उन्होंने भारत के गरीब लोगों के साथ खड़े होने की आवश्यकता देखी और महसूस किया कि अलग तरह के कपड़े पहनने से दरार पैदा हो सकती है। आश्चर्य की बात यह है कि उन्होंने यह पोशाक अपने अंतिम क्षणों तक पहनना जारी रखा, यहां तक कि विदेश यात्रा के दौरान भी। उन्होंने इस निर्णय पर कभी खेद व्यक्त नहीं किया, जैसा कि उनके शब्दों से पता चलता है:

“मेरे जीवन में सभी गहन परिवर्तन महत्वपूर्ण क्षणों की प्रतिक्रिया हैं, जो व्यापक चिंतन के बाद किए गए, जिससे मुझे पछतावे की कोई गुंजाइश नहीं रही। ये परिवर्तन विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकताएं थीं। उनमें से सबसे क्रांतिकारी, मेरी पोशाक में बदलाव, मदुरै में हुआ ।”

महात्मा गांधी

गरीबों से जुड़ने की गांधीजी की इच्छा कोई आकस्मिक विचार नहीं था। पिछले दो मौकों पर, उन्होंने एक आम आदमी की तरह कपड़े पहनने के बारे में सोचा था, लेकिन तमिलनाडु के मदुरै में उन्होंने ऐसा करने का फैसला किया। बाद में, उन्होंने स्वीकार किया कि मदुरै ने उन्हें अपने कपड़े चुनने का अधिकार दिया था। हालाँकि वह पहले यह निर्णय लेने की कगार पर थे, लेकिन आखिरकार उन्होंने मदुरै में अपने पारंपरिक कपड़े त्यागने और “लंगोटी” पहनने का साहस हासिल कर लिया।

गांधी ने उस अनुभव का वर्णन किया जिसने उन्हें अपने औपचारिक कपड़े उतारने के लिए प्रेरित किया: “मद्रास से मदुरै तक अपनी ट्रेन यात्रा के दौरान, मैंने साथी यात्रियों को देखा जो इस खबर से बेपरवाह लग रहे थे।” वे लगभग सभी विदेशी पोशाक पहने हुए थे। मैंने उनमें से कुछ से बात की और खादी के पक्ष में तर्क दिया। उन्होंने कंधे उचकाये और कहा, “हम खादी खरीदने के लिए बहुत गरीब हैं, क्योंकि यह काफी महंगी है।” मैंने उनके दावों की सटीकता को स्वीकार किया। मैंने धोती, बनियान और टोपी पहन रखी थी। चार इंच की लंगोटी को छोड़कर जिन लाखों व्यक्तियों को वस्तुतः नग्न रहना था, वे कठोर वास्तविकता को चित्रित करते थे, जबकि मेरे कपड़े केवल आंशिक रूप से सच्चाई का प्रतिनिधित्व करते थे। मेरे पास उन्हें जवाब देने का कोई अन्य तरीका नहीं था, सिवाय इसके कि मैं सभी अनावश्यक परिधान उतार दूं और खुद को सामान्य पोशाक पहने भीड़ के साथ और भी करीब से जोड़ दूं। नतीजतन, मैंने मदुरै में बैठक के बाद सुबह यह निर्णय लिया।

मदुरै की अपनी ट्रेन यात्रा के दौरान इस विचार पर विचार करने के बाद, गांधी ने 22 सितंबर, 1921 को सीधी धोती और शॉल पहनने का फैसला किया। मदुरै में वेस्ट मासी स्ट्रीट पर, वह एक अनुयायी के घर की ऊपरी मंजिल (दरवाजा नंबर 251) में रुके थे। यह शहर की उनकी दूसरी यात्रा थी; इसके बाद वह वहां दो और यात्राएं करेंगे। वह उस सुबह एक नई पहचान में दिखाई दिए जब वह रामनाथपुरम और फिर तिरुनेलवेली की यात्रा के लिए निकले, एक मजबूत फैशन स्टेटमेंट बनाते हुए, यदि आप इसे ऐसा कह सकते हैं। यह जानना दिलचस्प है कि खादी एम्पोरियम अब उसी घर में स्थित है।

मदुरै से अपनी यात्रा के दौरान लोगों का अभिवादन स्वीकार करने के लिए उन्हें रास्ते में रुकने के लिए मजबूर होना पड़ा। गांधी पोट्टल (खुला मैदान) उस स्थान का नाम है जहां वह अपनी नई लंगोटी पहनकर पहली बार सार्वजनिक रूप से उपस्थित हुए थे। मदुरै में कामराजार रोड पर, अलंकार थिएटर के ठीक सामने, वर्तमान में गांधी की एक छोटी मूर्ति खड़ी है।

हालाँकि, गांधी ने हर किसी को उनकी साधारण पोशाक अपनाने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया। उन्होंने नवजीवन में कहा, ”मैं नहीं चाहता कि मेरे सहकर्मी या पाठक लंगोटी अपनाएं।” मेरी राय में, उन्हें खादी निर्माण के महत्व और विदेशी कपड़े के बहिष्कार के बारे में प्रचार करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। मैं चाहता हूं कि उन्हें एहसास हो कि स्वदेशी के अंतर्गत सब कुछ आता है।

पोशाक में इस अचानक परिवर्तन से प्रशंसा और तिरस्कार के साथ-साथ भौंहें भी तन गईं।

एक दिलचस्प किस्सा हैं: जब गोलमेज सम्मेलन में गांधी और सभी भारतीय प्रतिनिधियों को किंग जॉर्ज पंचम ने अनिच्छा से बकिंघम पैलेस में दोपहर की चाय के लिए आमंत्रित किया था। तब गांधी की सादी पोशाक, जो अदालत कक्ष की व्यवस्था के लिए अनुचित थी, प्रतिरोध का स्रोत थी। दूसरी ओर, गांधी भी इसी तरह अडिग थे, उन्होंने पहले ही कह दिया था कि वह राजा से मिलने के लिए अपने कपड़े नहीं बदलेंगे। उनकी स्थिति स्पष्ट थी: ब्रिटिश शासन भारतीय गरीबी का प्राथमिक कारण था। गांधी इस सवाल पर अपनी प्रसिद्ध प्रतिक्रिया के लिए प्रसिद्ध हैं कि क्या राजा को देखकर उन्हें कम कपड़े पहने हुए महसूस हुआ था: “राजा ने हम दोनों के लिए पर्याप्त कपड़े पहने हैं।” इससे अधिक उचित तरीके से प्रतिक्रिया देने का कोई तरीका नहीं था।

धोती पर गांधी का स्पष्ट संदेश

“अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के आदेश के अनुसार, विदेशी कपड़ों के बहिष्कार को पूरा करने के लिए हमारे पास केवल कुछ ही दिन बचे हैं। लाखों लोग इतने निराश्रित हैं कि वे फेंके गए कपड़ों को बदलने के लिए पर्याप्त खादी नहीं खरीद सकते। उनके लिए, मैं उस सलाह को दोहराता हूं जो मैंने दी थी मद्रास बीच। उन्हें एक साधारण लंगोटी से संतुष्ट रहने दें। हमारी जलवायु में, हमें गर्म महीनों के दौरान अपने शरीर को ढालने के लिए शायद ही अधिक की आवश्यकता होती है। किसी की पोशाक से जुड़ी कोई शर्म नहीं होनी चाहिए। भारत ने कभी भी पुरुष शरीर को पूर्ण रूप से ढकने का आदेश नहीं दिया है क्योंकि एक सांस्कृतिक मानदंड। मैं इस सलाह को इसके निहितार्थों के बारे में पूरी जागरूकता के साथ पेश करता हूं। एक उदाहरण स्थापित करने के लिए, मैं कम से कम 31 अक्टूबर तक अपनी टोपी और बनियान को त्यागने का प्रस्ताव करता हूं, और सुरक्षा के लिए आवश्यक होने पर केवल एक लंगोटी और शॉल पर निर्भर रहने का प्रस्ताव करता हूं। मैं यह बदलाव इसलिए कर रहा हूं क्योंकि मैं हमेशा कुछ ऐसा सुझाव देने से झिझकता रहा हूं जिसे मैं व्यक्तिगत रूप से स्वीकार नहीं कर पाऊंगा, और क्योंकि मैं उन लोगों के लिए इसे आसान बनाने के लिए उत्सुक हूं जो विदेशी परिधानों को अपनाने का जोखिम नहीं उठा सकते। मैं इस त्याग को शोक का प्रतीक भी मानता हूं। मेरे क्षेत्र में नंगे सिर और शरीर का मतलब शोक है। जैसे-जैसे साल का अंत करीब आ रहा है और हमारे पास अभी भी स्वराज की कमी है, शोक की भावना मजबूत होती जा रही है। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि मैं अपने सहकर्मियों से यह अपेक्षा नहीं करता कि वे बनियान और टोपी का त्याग करें, जब तक कि वे इसे अपने काम के लिए आवश्यक न समझें।”

गांधी जयंती 2023 पर धोती का महत्व

गांधी जयंती 2023 के मौके पर, हमें धोती के महत्व को समझना चाहिए। इस दिन हमें महात्मा गांधी के समर्पण और सादगी का सम्मान करना चाहिए, और उनके धोती के प्रति हमारे आदर्शों को याद करना चाहिए।

Join whatsapp group Join Now
Join Telegram group Join Now
Join Facebook Page Join Now

गांधी जयंती के मौके पर धोती की महत्वपूर्ण भूमिका

गांधी जयंती के मौके पर धोती एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है इसके माध्यम से हम महात्मा गांधी के सिद्धांतों और आदर्शों को याद करते हैं और उनके द्वारा प्रकट की गई सादगी का मान्य करते हैं।

धोती का उत्सव एक पर्व है जो हमें याद दिलाता है कि सादगी में ही असली उच्चता होती है। गांधी जयंती 2023 के इस मौके पर, हम सभी को अपने जीवन में सादगी और स्वावलंबन की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का संकल्प लेना चाहिए।

इसके अलावा, हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि गांधी जयंती के इस अवसर पर हम धोती के माध्यम से अपने आत्मनिर्भर भारत के सपने को प्राप्त करने का संकल्प करते हैं।

इस प्रतिष्ठित दिन पर, हम सभी को यह समझना चाहिए कि महात्मा गांधी की धोती केवल एक परिधान नहीं थी, बल्कि यह एक आदर्श थी जो हमें सादगी, स्वावलंबन, और सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती थी।

उनके आदर्शों का अनुसरण करना

गांधी जयंती 2023 के मौके पर, हम सभी को महात्मा गांधी के आदर्शों का अनुसरण करने का संकल्प लेना चाहिए। उन्होंने हमें यह सिखाया कि सादगी, साहस, और सच्चाई ही सच्चे महान व्यक्तित्व की ओर पहुंचने का मार्ग है।

Read Also - गांधीजी: एक आत्मा, एक संदेश, एक विश्व Gandhi Ji One Soul, One Message, One World

मानवियता के संकेत

महात्मा गांधी के धोती पहनने का मात्र स्वरूप ही नहीं, बल्कि यह एक मानविकता के संकेत था। उनके धोती एक सामाजिक संदेश में छिपा था जिसमें सामाजिक समानता, सादगी, और विश्वास की भावना छुपी थी।

गांधी जयंती 2023 पर हमें महात्मा गांधी के आदर्शों को ध्यान में रखकर सादगी और स्वावलंबन के मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिए। उनके धोती का मात्र स्वरूप नहीं, बल्कि उनके आदर्शों की ओर हमारे कदम बढ़ने का प्रतीक था। इस गांधी जयंती पर, हम सभी को यह समझना चाहिए कि सादगी और स्वावलंबन ही हमारे जीवन में सच्ची ऊंचाइयों की ओर बढ़ने का मार्ग है।

इस प्रकार, हम सभी को गांधी जयंती 2023 के मौके पर महात्मा गांधी के सिद्धांतों का समर्थन करना चाहिए और धोती को उनके संदेश का प्रतीक मानना चाहिए। इससे हम महात्मा गांधी की याद में उनका समर्पण और आदर्शों का मान्य करते हैं और उनके संदेश को आगे बढ़ाते हैं।

FAQ

महात्मा गांधी जी की धोती का महत्व क्या है?

महात्मा गांधी जी की धोती उनके सादगी, स्वावलंबन, और आदर्शों का प्रतीक है। इसके माध्यम से वे यह सिद्ध करते थे कि सच्चे महान व्यक्तित्व का मार्ग सादगी में ही होता है।

महात्मा गांधी ने केवल धोती क्यों पहनी?

महात्मा गांधी जी ने केवल धोती पहनकर अपने सादगी और स्वावलंबन को प्रकट किया। धोती का चयन उनके विचारों को प्रकट करने और उनके संदेश को फैलाने का माध्यम था।

गांधी जयंती 2023 क्यों मनाई जाती है?

गांधी जयंती 2023 महात्मा गांधी के जन्म दिवस के रूप में मनाई जाती है। इस दिन हम उनके आदर्शों को याद करते हैं और उनके सादगी और स्वावलंबन के मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं।

गांधी जयंती पर क्या कार्यक्रम होते हैं?

गांधी जयंती पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जैसे कि सभा, प्रशंसा और विचार-विमर्श सभी महत्वपूर्ण होते हैं। लोग धोती पहनकर भी उनके संदेश का समर्थन करते हैं।

गांधी जयंती के मौके पर धोती के प्रति हमें क्या भावना रखनी चाहिए?

गांधी जयंती के मौके पर हमें धोती को महात्मा गांधी के सादगी, स्वावलंबन, और आदर्शों का प्रतीक मानना चाहिए। हमें इसके माध्यम से उनके संदेश को आगे बढ़ाने का संकल्प लेना चाहिए।

महात्मा गांधी की धोती की एक चित्रकला कैसे बना सकते हैं?

आप धोती की चित्रकला बनाने के लिए मार्कडाउन में Mermaid संवाद का उपयोग कर सकते हैं। एक बनाये गए चित्र में महात्मा गांधी को धोती पहने हुए दिखाने का प्रयास करें।

धोती का उत्सव आज के समय में क्यों महत्वपूर्ण है?

धोती का उत्सव आज के समय में भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें सादगी और स्वावलंबन के मार्ग पर चलने का संकेत देता है। यह एक महान नेता के सिद्धांतों को याद दिलाता है और उनके संदेश को फैलाने का एक अच्छा तरीका है।

Share this Article

Leave a Comment